
इसे जमींदारी,जागीरदारी,इस्तमरारी आदि नामों से भी जाना जाता है। स्थायी बंदोबस्त को गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस, राजस्व बोर्ड के प्रधान सर जॉन शोर तथा अभिलेख पाल जेम्स ग्रांट ने व्यापक विचार विमर्श के बाद लागू किया। मूल रूप जॉन शोर ने 1789 ईस्वी में इस भू – पद्धति की रूपरेखा सामने रखी है। प्रारंभ में यह 10 वर्षीय व्यवस्था के रूप में 1790 ईसवी में लागू किया गया था,जो 22 मार्च 1793 ईस्वी को स्थाई बंदोबस्त के रूप में स्थापित हुआ तथा 1 मई 1793 ईस्वी में कार्नवालिस कोड का पहला नियम बना। 1793 ईस्वी में से बंगाल,बिहार,उड़ीसा में लागू किया गया। कालांतर में इसे उत्तर प्रदेश के बनारस तथा उत्तरी कर्नाटक में भी लागू किया गया जो तत्कालीन ब्रिटिश भारत को कुल भूमि का 19% थी।
स्थायी बंदोबस्त से जमींदारों को लाभ
- जमींदारी व्यवस्था में 10/11 भाग या 89 % कंपनी को दिया जाता था, जबकि 1/11 भाग जमींदार अपने पास रख लेते थे। इसके तहत 2 करोड़ 65 लाख रूपये का अनुमान लगाया गया था।
- जमींदारों को अपने क्षेत्र के जमीनों का स्वामित्व दे दिया गया। जमींदारों से लिया जाने वाला भूमि कर स्थाई रूप से निर्धारित कर दिया गया। यदि किसी कारणवश जमींदार कर नहीं दे पाता था, तो उसकी जमींदारी समाप्त कर दी जाती थी।
- जमींदारी व्यवस्था के अंतर्गत जमींदारों के अधिकार – लगान की दर बढ़ाने का,जमींदार भूमि का मालिक था जो इसे बेच सकता था या रेहन अथवा दान दे सकता था।
स्थायी बंदोबस्त से कंपनी को लाभ
- निश्चित तथा स्थाई आय प्राप्त करना और बिना खर्च के व समय पर लागू वसूली तथा सशक्त जमींदारों को अपना समर्थक बनाना था।
- सरकार को एक निश्चित आय प्राप्त हुई यदि कोई जिम्मेदार लगाना अदा करने में असमर्थ रहता तो भूमि का एक टुकड़ा बेचकर सरकारी लगान के लायक आय प्राप्त कर लेता था।
स्थाई बंदोबस्त के बुरे परिणाम
सरकार का किसान से कोई सीधा संपर्क नहीं था,जमींदार लोग किसानों का आर्थिक शोषण करते थे,इस व्यवस्था के अंतर्गत एक सूर्यास्त कानून का निर्माण किया गया था,जिसमें यह व्यवस्था थी कि निश्चित दिन सूर्यास्त होने तक लगान अवश्य जमा कर दिया जाए,ऐसा न करने पर जमींदार की जागीर जब्त कर उसकी नीलामी कर दी जाती थी इससे कंपनी की आय में कमी,भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास एवं जमींदारों के अधिक शक्तिशाली होने में सहयोग मिला।
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