जैन धर्म अति प्राचीन धर्म है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर थे। जैन अनुश्रुति के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे जो भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।

महावीर का जीवनी
1. महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुंडग्राम (वज्जि संघ का गणतंत्र) ज्ञातृक क्षत्रिय कुल के प्रधान सिद्धार्थ के यहां 540 ईसवी पूर्व में हुआ था।महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था।
2. 72 साल में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के पावापुरी में हुई थी।
3. इनके माता का नाम त्रिशला था।
4. महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था।
5. सत्य की खोज में महावीर स्वामी 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यासी हो गए तथा 12 वर्ष की गहन तपस्या के पश्चात जंभियग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे उन्हें सर्वोच्च ज्ञान ( कैवल्य )की प्राप्ति हुई।
6. इंद्रियों को जीतने के कारण वे जीन और महावीर कहलाए।
7. महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बने।
8. महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बांटा था।
9. मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है।
10. जैन तीर्थंकरों की जीवनी कल्पसूत्र में है।
11. जैन धर्म दो भागों में विभाजित है- श्वेतांबर जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगंबर जो नग्न अवस्था में रहते हैं
12. इस धर्म में 24 तीर्थंकर हुए।
13. मोक्ष प्राप्त हो जाने के बाद महावीर स्वामी ने सुधर्मन को जैन संघ का प्रमुख बनाया था। महावीर के मृत्यु के बाद सुधर्मन ही जैन धर्म का थेरा अर्थात मुख्य उपदेशक हुआ।
इस धर्म का दक्षिण भारत में प्रचार प्रसार ,भद्रबाहु के द्वारा किया गया। भद्रबाहु से ही प्रेरित होकर,चंदगुप्त मौर्य ने जैन धर्म को अपनाया था। जैनियों का प्रसिद्द दिलवाड़ा मंदिर,माउंट आबू में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सोलंकी शासक ने करवाया था। खजुराहो के जैन मंदिर का निर्माण चंदेल शासकों ने करवाया। प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल श्रवणबेलगोला कर्नाटक में स्थित है।
जैन धर्म का सिद्धांत
- अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है।
- जैन तीर्थंकरों के कैवल्य ज्ञान और उनके उपदेशों का सिद्धांत का संग्रह 12 आगम ग्रंथों में है।
- जैन धर्म ईश्वर को सृष्टि के रचयिता एवं पालनकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करता है।
- जैन धर्म कर्म को प्रधानता देता है तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता है।
- जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है।
- बौद्ध धर्म की भांति “निर्वाण” ही जैन धर्म का चरम लक्ष्य है।
जैन धर्म के त्रिरत्न
- सम्यक दर्शन – यथार्थ ज्ञान के प्रति श्रद्धा ही सम्यक दर्शन है। कुछ व्यक्तियों में यह स्वभावतः मौजूद रहता है तथा अन्य इसे विद्योपार्जन द्वारा सीख सकते हैं।
- सम्यक ज्ञान – सत्य और असत्य का अंतर ही सम्यक ज्ञान है।
- सम्यक चरित्र – अहितकर कार्य का निषेध तथा हितकारी कार्य का आचरण ही सम्यक चरित्र है।
जैन महाव्रत क्या है
जैन महाव्रत को दो व्रतों में विभाजित किया गया है – पंच महाव्रत और पंच अणुव्रत
पंच महाव्रत
इसके लिए पांच महाव्रत प्रतिपादित किए गए हैं –
1. अहिंसा
2. सत्य
3. अस्तेय
4. अपरिग्रह
5. ब्रह्मचर्य
पंच अणुव्रत
जैन गृहस्थों के लिए भी पांच व्रत प्रतिपादित किए गए हैं –
1. अहिंसा
2. सत्य
3. असत्य
4.अपरिग्रह
5. ब्रह्मचर्य
उपरोक्त गृहस्थ वर्षों की कठोरता बहुत कम कर दी गई है इसलिए इन्हें अनुव्रत की संज्ञा दी गई है।
जैन धार्मिक ग्रंथ
जैन धार्मिक ग्रंथों को छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है –
1. द्वादश अंग
2. द्वादश उपांग
3 दश प्रकीर्ण
4. षट छेद सूत्र
5. चार मूल सूत्र
6. विविध धार्मिक ग्रंथों
नोट – इनमें अंग और उपांग अधिक महत्वपूर्ण है।
जैन धर्म के संगीतियां
संगीति | वर्ष | स्थान | अध्यक्ष |
---|---|---|---|
प्रथम | 300 ईस्वी पूर्व | पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र |
द्वितीय | 512 ईस्वी | वल्लभी (गुजरात) | क्षमा श्रवण |
दोस्तों के साथ साझा करें –