बिहार की मिट्टियाँ : Soils of Bihar

बिहार की मिट्टियाँ – मैदानी भाग, जहां गंगा का विशाल मैदान का मध्यवर्ती भाग विस्तृत है, प्रवाही या अपोढ़ प्रकार की मिट्टी मिलती है। यह मिट्टी विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला की चट्टानों से उत्पन्न हुई है।

गंगा का उत्तरी मैदान

यहाँ अपोढ़ मिट्टी की प्रधानता है। इस मिट्टी का निर्माण स्थानीय चट्टानों के तलछट से हुआ है। चट्टानों के अवशिष्ट के अनुसार ही इन मिट्यों की संरचना हुई है। 

इनमें तीन प्रकार की मिट्टियां उल्लेखनीय हैं-

तराई क्षेत्र में दलदली मिट्टी के रूप में यह बिहार की उत्तरी सीमा के साथ पश्चिम में चम्पारण की पहाड़ियों से लेकर पूर्व में किशनगंज तक फैली है। इस मिट्टी का रंग हल्का भूरा या पीला है। इसमें कहीं – कहीं कंकड़ और रेत की मात्रा अधिक है।

तराई के दक्षिण में नवीन जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र प्रारम्भ होता है जिसे यहाँ भांगर कहते हैं। इस मिट्टी का विस्तार पूर्णिया और सहरसा जिलों में दरभंगा और मुजफ्फरपुर के बाद चम्पारण के उत्तरी-पश्चिमी भाग में जाकर संकीर्ण होती हुई भांगर की पट्टी समाप्त होती है। इस मिट्टी में चूना और -क्षारीय तत्व नहीं हैं। यह मिट्टी गाढ़े भूरे रंग की या काली होती है।

बिहार के उत्तरी मैदान में -भांगर क्षेत्र के बाद बल सुंन्दरी मिट्टी का क्षेत्र है जो पूर्णिया के दक्षिणी भाग से प्रारम्भ होकर  सहरसा, दरभंगा और मुजफ्फरपुर के दक्षिणी भाग को घेरते हुआ सम्पूर्ण सारण जिले तथा चंपारण के शेष दक्षिणी-पश्चिमी भाग में विस्तृत है। इस मिट्टी को पुरानी जलोढ़ भी कहते हैं जिसमें चूने के तत्वों की प्रधानता है। यह मिट्टी गहरे भूरे रंग की है। यह क्षेत्र आम, लीची और केले के-बागों के लिए, उल्लेखनीय है।

गंगा के दक्षिण का मैदान

गंगा के दक्षिण में टाल, पुरानी जलोढ़ और बलथर मिट्टी का क्षेत्र है।गंगा के दक्षिणी भाग में 8 से 10 किमी की चौड़ाई की पट्टी में मोटे कणों वाली धूसर रंग की भारी मिट्टी विस्तृत है।इसे टाल मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण वर्षा ऋतु के बाद आयी बाढ़ के द्वारा बारीक व मोटे कणों वाली मिट्टी के निक्षेपण से होता है। जल सूखने के बाद इस भूमि पर रबी की अच्छी फसल होती है। पुरानी जलोढ़ मिट्टी को ही करैल-कैवाल मिट्टी कहते हैं। करैल-कैवाल मिट्टी का क्षेत्र गंगा के दक्षिणी मैदानी भाग में शाहाबाद से लेकर गया, पटना, मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक विस्तृत है, पुरानी जलोढ़ मिट्टी के साथ भारी चिकनी मिट्टी के मिश्रण के साथ स्थानीय रूप को करैल मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का रंग पीला व गहरा भूरा होता है। इस प्रकार की मिट्टी सोन घाटी के पश्चिमी भाग में शाहाबाद जिले में पायी जाती है। पुरानी जलोढ़ भूमि का क्षेत्र कैवाल मिट्टी कहलाती हैं। इसमें क्षारीय और अम्ल गुण बहुत सन्तुलित रूप से मिलते हैं। बिहार के मैदानी भाग में गंगा के मैदान की दक्षिणी सीमा पर जहाँ से छोटा नागपुर का पहाड़ी भाग प्रारम्भ होता है, बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है। इसमें रेत और कंकड़ की बहुलता रहती है। इस मिट्टी का रंग पीला और लाल है। यहाँ की प्रधान फसलें मक्का, अरहर, कुल्थी, चना तथा ज्वार-बाजरा है।

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