बिहार का प्रमुख त्यौहार

इस पोस्ट में बिहार के प्रमुख त्योहारों और पर्वों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है :-

Major Festival of Bihar

तीज

यह बिहार का एके प्रमुख पर्व है जो उन्हीं विवाहित स्त्रियों के लिए होता है जिनके पति जीवित हों। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं। पार्वती की पूजा करती हैं एवं अपने पति के दीर्घ जीवन की कामना करती हैं।

दशलक्षण पर्व

यह जैनियों का सर्वाधिक पावन वर्ष है जो भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तक सितम्बर महीने में मनाया जाता है। यह त्याग का पर्व है। इस पर्व में मन्दिरों को आकर्षक ढंग से सजाकर जल यात्राएं, रथ यात्राएं निकाली जाती है।

जिऊतिया

यह संतानवती महिलाएं मनाती हैं। इस पर्व को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसमें महिलाएं निर्जल उपवास रखकर अपनी संतान की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

पीड़िया

यह लड़कियों का पर्व है जो गोवर्धन पूजा के दिन प्रारम्भ होकर एक माह तक चलता है।

सरस्वती पूजन

माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के दिन बिहार में सरस्वती की प्रतिमा बनाकर उसका पूजन कर फिर विसर्जन किया जाता है।

बुद्ध जयन्ती

वैसाख की पूर्णिमा को बुद्ध जयन्ती का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन बिहार में बोध गया में बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था।

गोवर्धन

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रथमा को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट की पूड़ी व सब्जी तैयार की जाती है, जो सबको प्रसाद के रूप में बाँटी जाती है। इस दिन गोवर्धन की पूजा होती हैं। इस दिन बिहार के लोग पशु-क्रीड़ा का भी आयोजन करते हैं।

देवोत्थान

यह पर्व कार्तिक मास की शुल्क पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। बिहार के लोग इस दिन सांयकाल के समय गन्ना,गुड़, शकरकन्द आदि से भी भगवान की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देव और भगवान विष्णु चार मास के शयन के पश्चात्‌ उठते हैं।

महालया

यह आश्विन के कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के रूप में 5 दिन तक मनाया जाता है। इस अवसर पर हिन्दू अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं। कुछ लोग गया आकर अपने पितरों का पिण्डदान करते हैं। लोगों की धारणा है कि श्राद्ध न करने पर पितरों की मुक्ति नहीं होती हैं और उनकी आत्मा भटकती रहती हैं।

छठ पर्व

यह बिहार का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन सूर्य देवता की पूजा अर्चना की जाती है। यह पर्व दो दिन चलता है। इस पर्व में पष्ठी का सध्या को अस्त होते हुए सुर्य को, अगले दिन सप्तमी की प्रात: उदय होते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। यह अर्घ्य किसी तालाब, झील या नदी के किनारे पर नारियल, गेहूँ और गुड़ से बने पकवानों सहित दिया जाता है।

हरदी मेला

प्रत्येक वर्ष ‘ शिवरात्रि’ के पर्व पर यह मेला मुजफ्फरपुर में 5 दिन तक आयोजित किया जाता है।

बेतिया मेला

प्रत्येक वर्ष दशहरे पर यह मेला बेतिया में आयोजित किया जाता है। लगभग 15-20 दिन तक आयोजित इस पशु मेले में राज्य के हजारों लोग अपने-अपने पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए यहां आते हैं।

सौराठ मेला

प्रत्येक वर्ष जेठ-आषाढ माह में ‘सभागाछी ‘ (मधुबनी जिला) में आयोजित इस मेले में अविवाहित वयस्क युवकों को विवाह हेतु प्रदर्शित किया जाता है। यह मेला विश्व में अपनी अद्भुत रूप के लिए प्रसिद्ध है।

काली देवी का मेला

प्रत्येक वर्ष अक्टूबर/नवम्बर माह में ‘ फारबिसगंज ‘ में आयोजित इस 5 दिवसीय धार्मिक मेले में काली देवी की पूजा की जाती है।

सिमरिया मेला

प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में जब सूर्य उत्तरायण में होता है, तो यह मेला बरौनी जंक्शन से 8 किमी. दूर दक्षिण-पूर्व में ‘राजेन्द्र पुल’ के आसपास आयोजित किया जाता है। इस मेले का धार्मिक दृष्टि से अधिक महत्व होता है।

कोसी मेला

प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा पर कटिहार के निकट ‘ कोसी नदी’ पर आयोजित इस मेले में श्रद्धालुजन पुण्य भी कमाते हैं और लकड़ी के सामान का क्रय-विक्रय भी करते हैं।

गुलाबबाग मेला

प्रत्यक वर्ष दिसम्बर माह में पूर्णिया जिले के ‘ गुलाबबाग’ में इस 5 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

कोकोलत मेला

प्रत्येक वर्ष मेष संक्रांति के अवसर पर नवादा जिले के ‘कोकोलत’ नामक स्थान पर इस धार्मिक मेले का आयोजन छह दिनों तक किया जाता है।

राजगीर का मेला

यह मेला हर तीसरे वर्ष मलमास (लौंद का महीना )में लगता है और पूरे एक माह चलता है।

अनन्त

यह भादो के शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से बच्चों और किशोर-किशोरियों का पर्व है।

खिचड़ी

यह पर्व धान की फसल आने की खुशी में मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग दिन में चूड़ा (चिवड़ा) दही , तिलवा और तिलकुट तथा रात में खिचड़ी खाते हैं।

सतुआन

यह पर्व चने की फसल आने की खुशी में मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग विशेष रूप से सत्तू खाते हैं।

विश्वकर्मा पूजा

यह लोहे का काम करने वाले लोगों का पर्व है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। यह हर वर्ष 17 सितम्बर को मनाया जाता है।

बहुरा

यह मुख्यत: लड़कियों का ही पर्व है। यह भादों के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी को मनाया जाता है।

चउकचनना

यह भादों के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों का पर्व है। अंग्रेजी माध्यम वाले विद्यालयों के प्रसार के कारण अब यह पर्व अधिकांश क्षेत्रों में सिर्फ गांवों तक ही सिमट कर रह गया है।

समा-चकेवा

शीत ऋतु में पक्षियों के मैदानी भाग की ओर प्रवसन के दौरान यह पर्व मनाया जाता है। मिथिलांचल का यह विशेष पर्व भैया दूज की तरह ही है। इसे लड़कियां कार्तिक माह में 9 दिनों तक मनाती हैं। इस दौरान लड़कियां मिट्टी के पक्षियों के विभिन्‍न स्वरूप बनाती हैं तथा उन्हे परम्परागत रूप से सजाती हैं। समा की विदायी के साथ इस पर्व की समाप्ति होती है।

वट सावित्री ( बरसायत )

इसे मिथिलांचल की महिलाएं जेठ माह की अमावस्या को मनाती हैं।

मधुश्रावणी

यह भी मिथिलांचल का ही पर्व है। इसे सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी से शुक्ल पक्ष की तृतीया तक मनाया जाता है। इसमें शिव-पार्वती और नाग की पूजा की जाती है।

जूड़-सीतल

यह मिथिलांचल में मेष संक्रांति के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन घरों में लोग चूल्हा नहीं जलाते , बल्कि बासी खाना ही खाते हैं और मिट्टी-पानी से होली की तरह आपस में खेलते हैं।

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