राज्य के वनों में शेर, हाथी, लंगूर, डीयर, भालू, बाघ, तेंदुआ, नीलगाय, सांभर आदि पाए जाते हैं। वन्य जीव संरक्षण हेतु यहाँ कई उद्यान व अभयारण्य हैं।

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गौतम बुद्ध वन्य जीव अभयारण्य
यह अभयारण्य गया जिले में है। इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1976 ई. में कीं गई थी। यह 25.83 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, इस अभयारण्य में मुख्यतः चीता, सांभर, तेंदुआ, हिरन, चीतल इत्यादि पाए जाते हैं।
संजय गांधी जैविक उद्यान
यह पटना में स्थित है। इस उद्यान में विभिन्न प्रकार के पशु -पक्षी एवं वनस्पति को संरक्षित रखा गया हैं। गैंडा प्रजनन के संदर्भ में यह उद्यान देश के उद्यानों में प्रथम स्थान रखता है। यहाँ 11 कमरों का एक साँप घर है जो आकर्षण का केन्द्र है।
भीमबाँध वन्य जीव अभयारण्य
इस अभयारण्य की स्थापना 1976 ई. में मुंगेर जिले में की गई थी। यह 631.99 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। यहाँ तेंदुआ, भालू, गाय, सांभर, जंगली सुअर, भेडिया, लंगूर, बंदर, नीलगाय, मगरमच्छ, मोर आदि पाए जाते हैं।
वाल्मीकि नगर वन्य जीव अभयारण्य
यह बिहार का दूसरा बाघ परियोजना है जो पश्चिम चम्पारण जिले के बाल्मीकि नगर में स्थित है। यह 840 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। हाल की गणना के अनुसार यहाँ बाघों की संख्या लगभग 80 है।
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य
भागलपुर जिले में स्थित यह अभयारण्य भारत में अपनी तरह का पहला डॉल्फिन अभयारण्य है। बिहार सरकार ने 1990 में इसे डॉल्फिन अभयारण्य के रूप मे मान्यता दी। यह 50 किमी क्षेत्र में फैला है। यहाँ डॉल्फिन मछलियों की संख्या 400 से 500 के बीच है। डॉल्फिन सामान्यतः समुद्रों या गंगा नदी के निचले भागों में मिलती हैं। भागलपुर जिले में स्थित सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी में 50 किमी. का क्षेत्र डाल्फिन अभ्यारण्य के रूप में संरक्षित है।
परमान डॉल्फिन अभयारण्य
परमान नदी के ऊपरी भाग में 15 डॉल्फिन मछलियों की खोज 1995 में सूडान सहाय नामक प्रकृति विज्ञानी ने की। यह अभयारण्य विकसित किया जा रहा है।
उदयपुर अभ्यारण्य
पश्चिमी चम्पारण जिले के बेतिया शहर की सीमा पर
उदयपुर अभयारण्य है। यह लगभग 10 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। यहाँ बाघ एवं अन्य पशु-पक्षी पाये जाते हैं।
नक्टी पक्षी विहार
जमुई जिले में स्थित इस पक्षी विहार को 1987 में एक पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली। इसका क्षेत्रफल 2.06 वर्ग किमी है।
कावर पक्षी विहार
बेगूसराय जिले में स्थित यह पक्षी विहार 63.11वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। सन् 1989 में इसे पश्नी विहार के रूप में मान्यता मिली। रूस, मंगोलिया एवं साइबेरियाई देशों से हजारों किमी की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी यहाँ पहुँचते हैं। इस पक्षी विहार में कुछ दुर्लभ किस्म के पक्षी हिमालय के ऊपरी भागों, चीन व श्रीलंका से भी आते हैं। यहां Bird Banding Station की स्थापना की गई है।
नागी पक्षी बिहार
नागी पक्षी बिहार जमुई जिले में स्थित है। इसे पक्षी बिहार के रूप में मान्यता 987 में मिली।
घोघा झील अथवा घोघा चाप
कटिहार के मनिहारी प्रखण्डान्तर्गत घोघा चाप 5 वर्ग किमी. में फैली एक बड़ी झील है। साथ ही इसके आप-पास 6 वर्ग किमी. में छोटी-बड़ी अनेक झीलें स्थित है। इसमें अनेक प्रकार की वनस्पति एवं जीव जन्तु पाये जाते है। यह झील प्रवासी पक्षियों का भी विश्राम केन्द्र है।
गोगाबिल पक्षी विहार
कटिहार जिले में स्थित यह पक्षी विहार 217.99 एकड क्षेत्र में फैला हुआ है। सन् 1990 में इसे पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली। इस पक्षी विहार में धनुषाकार झील है जिसका नाम गोगाबिल है।
कुशेश्वर पक्षी विहार
यह दरभंगा जिले में 100 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर भारत का सबसे बड़ा पक्षी विहार है। यहाँ साइबेरियाई प्रवासी पक्षी अक्टूबर माह में आने लगते हैं।
बक्सर पक्षी विहार
यह पक्षी विहार बक्सर जिले में 25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में विकसित किया गया है। अक्टूबर माह में ‘ लालशर’ नामक पक्षी कश्मीर से यहाँ प्रवास कर आते हैं जो मार्च में पुनः कश्मीर की वादियों में लौट जाते हैं।
यह अभयारण्य गया जिले में है। इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1976 ई. में कीं गई थी। यह 25.83 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, इस अभयारण्य में मुख्यतः चीता, सांभर, तेंदुआ, हिरन, चीतल इत्यादि पाए जाते हैं।
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