बिहार के प्रमुख लोक-गीत

इस पोस्ट में बिहार के प्रमुख लोक गीत के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है :- About Major Folk Songs of Bihar in this post:-

Major Folk Songs of Bihar

संस्कार गीत

बालक-बालिकाओं के जन्मोत्सव, मुण्डन,पट्टी-पूजन, जनेऊ तथा विवाह आदि पर गाये जाने वाले संस्कार गीत है- सोहर, खेलौनो, कोहबर, समुझ बनी आदि।

गाथा-गीत

राज्य के विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रचलित विविध लोकगाथाओं पर आधारित इन गाथा-गीतों को निम्न श्रेणियों में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है।

लोरिकायन

वीर रस से परिपूर्ण इस लोकगीत में नायक लोरिक के जीवन-प्रसंगों का वर्णन किया जाता है।

नयका बंजारा

सम्पूर्ण राज्य के विभिन्‍न क्षेत्रों में गाये जाने वाले इस लोक गीत में प्राय: विषय वस्तु तो एक ही होती है किन्तु स्थान, पात्र तथा चित्रों में विविधता के दर्शन होते हैं।

विजमैल

राजा विजयमल की वीरता का बखान करने वाले इन. लोकगीतों में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचलित गाथा का वर्णन किया जाता है।

सलहेस

एक लोककथा के अनुसार सलहेस दौना नामक एक मालिन का प्रेमी था। उसके एक शत्रु ने ईर्ष्यावश सलहेस को चोरी के झूठे आरोप में बंदी बना दिया। दौना मालिन ने अपने प्रेमी सलहेस को किस प्रकार मुक्त कराया। इसी प्रकरण को इस लोक-गीत में भाव-विभोर होकर गाया जाता है।

दीना भदरी

इस लोक-गीत में दीना तथा भदरी नामक दो भाईयों के वीरता का वर्णन मार्मिकता से गाया जाता है। इसके साथ ही राज्य के विभिन्‍न अंचलों में आल्हा-ऊदल, राजा ढोलन सिंह, छतरी चौहान, नूनाचार, घुघुली-घटना, लुकेसरी देवी, कालिदास, मनसाराम, छेछनमल, लाल महाराज, गरीब दयाल सिह, मीरायन, हिरनी-बिरनी, कुंअर बृजभार, राजा विक्रमादित्य , बिहुला, गोपीचन्द्र, अमर सिंह बरिया, राजा हरिशचन्द्र, कारू खिर हैर, मैनावती आदि के जीवन एवं उनकी ‘वीरताभरी गाथाओं को राज्य के गाथा-गीतों के रूप में गाया जाता है।

पर्वगीत

राज्य में विशेष पर्वों एवं त्यौहारों पर गाये जाने वाले गीतों को ‘ पर्वगीत’ कहा जाता है। होली, छठ, तीज, जिउतिया, बहुरा, पीड़िया, गो-धन, रामनवमी , जन्माष्ठमी तथा अन्य शुभ अवसरों पर गाये जाने वाले गीतों में प्रमुखतः शब्द, लय एवं गीतों में भारी समानता होती है।

ऋतुगीत

विभिन्‍न ऋतुओं में गाये जाने वाले ऋतुगीतों में प्रमुख हैं- कजरी अथवा कजली, चतुर्मासा, बारहमासा, च्चइता तथा डिंडोला आदि।

पेशा गीत

राज्य में विभिन्‍न पेशे के लोग अपना कार्य करते समय जो गीत गाते जाते हैं उन्हें ‘पेशा गीत’ कहते हैं। उदाहरणार्थ- गेहूं पीसते समय ‘ जांता-पिसाई’, छत की ढलाई करते समय ‘ थर्पा’ तथा छप्पर छाते समय ‘छवाई’ और इनके साथ ही विभिन्‍न व्यावसायिक कार्य करते समय ‘ सोहनी ‘ , ‘रोपनी ‘, आदि गीत गाते-गाते कार्य करते रहने का प्रचलन है।

जातीय गीत

समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों की विविध जातियां मनोकूल अपने ही गीत गाती हैं, जिन्हें ‘ जातीय गीत’ कहते हैं। श्रोतांगण उन्हें सुनकर अनुमान कर लेते हैं कि गायक-गायिका किस जाति विशेष से सम्बन्धित हैं।

बिहार के प्रमुख लोक गायक

राज्य में शारदा सिन्हा, डॉ. शंकर प्रसाद, मोतीलाल “मंजुल’, विंध्यवासिनी देवी, नन्द किशोर प्रसाद, कमला देवी, केसरी नन्दन भगत, कुमुद अखौरी , ग्रेस कुजूर, विष्णु प्रसाद सिन्हा , ब्रज किशोर दुबे, भरत सिह भारती, संतराज सिंह ‘रागेश’, योगेन्द्र सिंह अलबेला, अजित कुमार अकेला, भरत शर्मा, शम्भूराम, कविता चौधरी, उमाकान्त कमल, ललिका झा, उर्वशी, रेणुका सहाय आदिं बहुचर्चित एवं बहुप्रशंसित लोक गायक हैं।

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