History of Bihar
- बिहार उत्तरी भारत की गंगा घाटी में स्थित प्राचीन इतिहास का मगध प्रदेश ही है जिसकी वैभवशाली राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह उत्तरकालीन शिशुनाग, नन्द, अंग, वैशाली, मिथिला आदि भारतीय राजवंशों के विकास का क्षेत्र रहा है।
- बिहार उत्तरी भारत की गंगा घाटी में स्थित प्राचीन इतिहास का मगध प्रदेश ही है जिसकी वैभवशाली राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह उत्तरकालीन शिशुनाग, नन्द, अंग, वैशाली, मिथिला आदि भारतीय राजवंशों के विकास का क्षेत्र रहा है।
- भगवान बुद्ध ने बिहार राज्य में ही ज्ञान प्राप्त किया था और यहीं से अपने विश्वव्यापी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रारम्भ किया था। महावीर भी यहीं पैदा हुए थे। प्राचीन काल में भारत का ऐतिहासिक नालन्दा विश्वविद्यालय भी आधुनिक बिहार में ही स्थित था।
- ऐसा अनुमान है कि इस क्षेत्र में बौद्ध विहारों की बहुलता को देखकर लोगों ने इसे बिहार कहना प्रारम्भ कर दिया हो। मध्यकाल में नालंदा और उदंतपुरी के निकट स्थित अनेक बौद्ध विहारों को देखकर मुसलमान शासकों ने इस प्रदेश का नाम बिहार रख दिया था।
- प्राचीन काल में अनेक बौद्ध विहारों वाले नगर उदंतपुरी को आज भी बिहार शहर (बिहार शरीफ) कहते हैं।
- यह प्रदेश पिछली कई शताब्दियों से राजनीतिक सत्ता की धुरी रहा है। मौर्य वंश के उदय से पूर्व यह प्रदेश संस्कृति और सभ्यता को क्षेत्र में अग्रणी रहा है।
- पौराणिक काल के (शतपथ ब्राह्मण) संदर्भों के अनुसार आर्य भारत में प्रवेश और प्रसार के बाद यहाँ पहुँचे थे।
- गण्डक नदी तक पहुँचकर ये लोग रुक गये, क्योंकि इसके पार पूर्व का प्रदेश (बिहार प्रदेश) अग्नि द्वारा शुद्ध नहीं किया गया था।
- राजा जनक ने यहीं अपने प्रसिद्ध राज्य की नींव डाली और मिथिला को सुसंस्कृत राज्य के रुप में प्रतिष्ठित किया।
- ऋषि याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद का संशोधित संस्करण इसी प्रदेश की भूमि पर तैयार किया था।
- अथर्ववेद में मगध प्रदेश का उल्लेख है जिसका सम्बन्ध इसी भौगोलिक विस्तार से जुड़ा है।
- प्राचीन बिहार के मुख्य राज्य मगध, अंग, वैशाली और मिथिला भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास के प्रमुख स्तम्भ कहे जा सकते हैं।
- मगध राजवंश सर्वप्रथम जरासंध के पिता बृहद्रथ से प्रारम्भ होता है। ईसा के पूर्व छठी शताब्दी में बृहद्रथ वंश के राजाओं को परास्त कर नये राजवंश की स्थापना हुई।
- नवीन राजवंश का नाम पुराणों के अनुसार शिशुनाग था जिसके प्रथम राजा शिशुनाग थे।
- हर्यक वंश के सबसे शक्तिशाली राजा का नाम बिम्बिसार था जिसने पूर्वी बिहार के अंग राज्य पर अधिकार कर लिया था। बिम्बिसार का मगध राज्य चारों ओर से नदियों व पाँच पहाड़ों से घिरा था और साथ-साथ पत्थर की दीवार से सुरक्षित था।
- बिम्बिसार के पुत्र व उत्तराधिकारी अजातशत्रु ने अपने राज्य का पर्याप्त विस्तार किया था। उसने मगध राज्य के उत्तर तथा उत्तर-पूर्व के प्रजातन्त्रों की प्रतिद्वन्दिता तथा राज्य विस्तार की आशा पर तुषारापात कर दिया था।
- वैशाली के वज्जियों के आक्रमणों के प्रतिरोध के लिए उसने गंगा और सोन के संगम पर अवस्थित पाटलिग्राम को सुरक्षित किया जो आगे चलकर पाटलिपुत्र नगर बना और भारत की सदियों तक राजधानी रहा था।
- शिशुनाग वंश के उपरान्त नन्द वंश का प्रादुर्भाव हुआ। नन्द ने अपने राज्य का काफी विस्तार कर लिया था, परन्तु मौर्य वंश के शासनकाल में मगध ने पर्याप्त कीर्ति अर्जित की और महानता के शिखर पर आरूढ़ हुआ।
- चन्द्रगुप्त और अशोक इस वंश के महान शासक थे जिन्होंने राज्य विस्तार के साथ-साथ जनकल्याण राज्य की स्थापना की। उन्होंने सुचारु रूप से शासन की एक ऐसी प्रणाली स्थापित की जो जीवन के हर पहलू में प्रजा के लिए सुखदायंक और हितकारी थी।
- मौर्य काल में राजनीतिक एकीकरण से निरापद व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला और चतुर्मुखी विकास हुआ।
- मौर्य साम्राज्य के अवसान के साथ ही भारत की राष्ट्रीय एकता की भावना भी लुप्त हो गई थी।
- मौर्य वंश के ह्रास के बाद गुप्त वंश ने बिहार के खोये गौरव को लौटाया। गुप्त साम्राज्य का विस्तार बहुत बड़ा था और चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में राजधानी पाटलिपुत्र से हटकर उज्जैयनी ले जायी गई, लेकिन पाटलिपुत्र के महत्व में कोई कमी नहीं आयी।
- फाह्यान एवं ह्वेनसांग जैसे चीनी यात्रियों ने पाटलिपुत्र की नागरिक सुविधाओं, समृद्धि एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों की प्रशंसा की है। पाटलिपुत्र के अतिरिक्त नालंदा तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय बिहार में स्थित थे।
- गुप्त साम्राज्य की राजशक्ति के हास के साथ ही बिहार की स्वाधीनता जाती रही और पाटलिपुत्र भी भारत का केन्द्रीय नगर नहीं रहा। लेकिन पाल वंश के उदय के साथ-साथ पाटलिपुत्र के गौरव की पुनरावृत्ति हुई। पाल वंश के राजाओं के आदेशानुसार पाटलिपुत्र को विकसित और विस्तृत किया गया।
- 11 वीं शताब्दी के मध्य बिहार राजनीतिक विघटन का शिकार हुआ। पाटलिपुत्र और मुंगेर पाल साम्राज्य का अंग बन गया। गया, भागलपुर , रोहतास आदि में छोटे-छोटे रजवाड़ों ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।
- बख्तियार खिलजी ने अवसर का लाभ उठाकर बिहार को पाल राजाओं के चंगुल से छुड़ा लिया पर दिल्ली के सुल्तान के लिए, इस प्रदेश पर अपना प्रभावशाली नियंत्रण करना कठिन सिद्ध हुआ।
- ऐसा प्रतीत होता है कि बारहवीं सदी के प्रथम भाग में मदनपाल के राज्यकाल में बिहार में शक्तिशाली राज्य की नींव रखी। सोलहवीं सदी में शेरशाह के सुशासन का पूरे उत्तर भारत में प्रभाव था। वह कुशल सेनापति के साथ-साथ दूरदर्शी शासक भी था। उसने बंगाल और पंजाब को जोड़ने वाली ग्राण्ड ट्रंक रोड का निर्माण कराया था। शेरशाह की उदार शासन प्रणाली में कु
- ऐसे तथ्य थे जिन्हें महान मुगल शासक अकबर ने भी अपनाया था। शेरशाह ने ग्वालियर, मालवा, रणथम्भौर और जोधपुर के शासकों को भी अपने अधीन कर लिया था।
- 1575-1576 में अकबर ने बंगाल और बिहार को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। इस पर विजय प्राप्त करना दिल्ली के शासकों के लिए कठिन चुनौती रहा। बिहार का सूबेदार आमतौर पर कोई शाही राजकुमार ही बन सकता था। 1733 ई. में बिहार को बंगाल के सूबे का एक हिस्सा मान लिया गया था।
- उसके बाद अठारहवीं शताब्दी के मध्य भाग की राजनीतिक क्रान्तियों से बिहार का इतिहास प्रभावित रहा।
- वर्ष 1757-1765 तक बंगाल में अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ने के साथ बिहार व झारखण्ड पर भी उनका प्रभाव बढ़ा। मानभूम, सिंहभूम, संथाल परगना (झारखण्ड) आदि का स्थानीय इतिहास मुख्यधारा से अलग-थलग होता रहा। जनजातियों के राजाओं की स्वायत्तता मुसलमान सूबेदार समाप्त नहीं कर पाये थे। ऐसे शासक अपनी बारी आने पर पंचायत के मुखियाओं , बिरादरी के बड़े-बूढ़ों को अपना सहकारी बनाते थे। दुर्गम होने के कारण यह प्रदेश मुगलों और मराठों के आक्रमण से बचे रहे।
- कभी-कभार किसी उत्पीड्क शासक के विरूद्ध विद्रोही इन स्थानों के जंगलों में शरण लेते थे।
- 1765 में बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ में चली गयी, पटना पर शाह आलम का अधिकार बना रहा। पर यथार्थ में बिहार, बिहार और बंगाल के संयुक्त प्रान्त का हिस्सा बन गया पर बिहारियों ने अंग्रेजों की दासता को सहजता से स्वीकार नहीं किया।
- 1857 के स्वाधीनता संग्राम में कुंवर सिंह ने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया।
- राजकुमार शुक्ला की प्रेरणा से गांधीजी ने चम्पारन में सत्याग्रह आरम्भ किया।
- 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान बिहार में हिंसा पर काबू कठिनाई से ही पाया जा सका।