महालवाड़ी व्यवस्था : Mahalwari System

महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ईस्वी में हॉल्ट मैकेंजी के द्वारा लाया गया। महालवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था।

  • महालवाड़ी व्यवस्था 1822 ईसवी में लागू की गई।यह जमींदारी प्रथा का ही एक संशोधित रूप थी। इसे अधिनियम 7 भी कहा जाता है।
  • महालवाड़ी व्यवस्था में मालगुजारी का बंदोबस्त अलग-अलग गांवों या माहौल या जागीरो के आधार पर उन परिवारों के मुखिया के साथ किया गया,जो सामूहिक रूप से उस गांव का महल के भूस्वामी होने का दावा करते थे,जो लंबरदार कहलाते थे। 
  • लंबरदार पर अपने महाल से भूमि-कर वसूलने का दायित्व था। कंपनी कुल उत्पादन का 85% से लेकर 95% तक भूमि – कर के रूप में वसूल दी थी
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भारत की 30% भूमि थी।
  • भूमि का स्वामित्व कंपनी के पास था जिससे भूमि बेची जा सकने, गिरवी रखी जाने और हस्तांतरित की जा सकने वाली वस्तु बना दी गई दी गई ।
  • 1833 ईस्वी में विलियम बेंटिक ने अपने नोवे अधिनियम द्वारा कंपनी के लिए भूकर 80% निर्धारित किया  गया। इस वर्ष प्रथम बार खेतों के मानचित्र तथा पंजियों का प्रयोग किया गया। यह नयी योजना मार्टिन बर्ड द्वारा लागू की गई जिन्हें उत्तरी भारत में भूमि कर व्यवस्था का प्रवर्तक कहा गया।
  • यह बंदोबस्त 30 वर्ष के लिए क्या गया। बाद में रॉबर्ट मार्टिन बोर्ड ने 66% भाग कंपनी के लिए निर्धारित किया। 1855 ईसवी में सहारनपुर के कृषक विद्रोह के बाद सहारनपुर अधिनियम 1855 द्वारा डलहौजी ने यह भाग घटाकर 50% कर दिया गया। महालवाड़ी पद्धति पश्चिमी उत्तर प्रांत के गवर्नर जनरल के समय तक सहजता से चली।

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